तुम बेरहम धूप में तपना सीख कर चलो;
चौराहें इतनी है कि खोना तो लाज़मी है,
अनजान तंग गलियों में से रास्ता ढूंढ कर चलो;
कंकड़ और कांटे बिछे रहेंगे तुम्हारे पथ पर,
उनके दिए ज़ख्मों पर मरहम लगा कर चलो;
कई हमसफर तुम्हे छोड़ अपनी अलग राह पकड़ेंगे,
तुम अपनी राह पे अकेले आगे बढ़ कर चलो;
दुर्घटनाएं तुम्हारे जिगर को झंझोर के रख देंगी,
तुम अपना होंसला बुलंद रख कर चलो;
भीड़ में, भगदड़ में, तुम भुला दिए जाओगे,
तुम अपने लिए थोड़ी जगह बनाते हुए चलो;
ज़िन्दगी है! ख्वाब तो टूटेंगे और महल भी बिखरेंगे,
तुम अपनी उम्मीदों को ज़िंदा रख कर चलो।
ये कविता निदा फ़ाज़ली जी की गज़ल ' सफर में धूप तो होगी चल सको तो चलो ' से प्रेरित है।
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