Not a literal translation, but just trying to convey the same thoughts in a way that can be sung in the same tune.
सोचो की कोई जन्नत नहीं
तो मर के कहाँ जाओगे
न हो डरने की कोई वजह
बस छूने को खुला अम्बर
सोचो सब लोग सब कुछ भूल कर
इस लम्हें को जियें ...
सोचो अगर न हो कोई देश
और न ही कोई सरहद
मरने न मारने की कोई वजह
न अपने पराये का भेद
सोचो दुनिया के सब लोग
बस सुकून से जियें ...
हाँ में ये ख्वाब देखता हूँ
पर में अकेला तोह नहीं
तो क्यों न फिर हम सब मिलकर
ये सपना सच कर दें ...
सोचो क्या तुम जी सकते हो
बिना कुछ भी अपना समझे
भूक और लालच का न हो निशां
इंसानियत सभी में जगे
सोचो दुनिया के सब लोग
सब मिल बाँट के रहें ...
हाँ में ये ख्वाब देखता हूँ
पर में अकेला तोह नहीं
तो क्यों न फिर हम सब मिलकर
ये सपना सच कर दें ...
No comments:
Post a Comment